ज़िले में वैसे तो फूलों की खेती कई क्षेत्रों में होती है, लेकिन नगर के चाचकपुर गांव में इसका पैमाना थोड़ा बड़ा है। यहां पर गुलाब, गेंदा, बेला समेत कई खुशबूदार फूल पैदा किए जाते हैं। इस गांव में करीब 200 किसान हैं जिनकी जिंदगी फूलों की खेती पर ही निर्भर है। रोजाना खेतों से फूल तोड़कर फूल मंडी में बेचना उनकी दिनचर्या थी। इसी से उनकी रोजी-रोटी भी चलती थी। मंडी से फुटकर दुकानदार फूल ख़रीद कर मंदिरों और शादी-ब्याह समेत मांगलिक कार्यों में बेचते थे। राजनीतिक कार्यक्रमों में भी फूल-माला ख़ूब बिकते थे। लाकडाउन हुआ तो समारोहों पर पाबंदी लग गई। संक्रमण से बचने के लिए धार्मिक आयोजनों को भी बंद कर दिया गया। नेताजी के भी कार्यक्रम स्थगित हो गए। अब इन्हीं के सहारे ज़िंदगी गुज़रने वाले किसानों के सामने पेट भरने की समस्या खड़ी हो गई है। खेतों में फूल तो लहलहा रहे हैं लेकिन वह किसी काम के नहीं। किसान उनको तोड़ेंगे तो बाजार में खरीदार नहीं मिलेंगे, नहीं तोड़ेंगे तो सूख कर खेत में ही गिर जाएंगे। दोनों ही सूरत में नुक़सान फूल किसान का ही है।
काशी, अयोध्या, मीरजापुर तक होती थी सप्लाई
जौनपुर के फूल यहां तो इस्तेमाल होते ही थे इसके अलावा उनकी भारी खपत काशी, अयोध्या, मीरजापुर समेत कई जनपदों में होती थी। यहां तो फूलों को प्रसिद्ध मंदिरों पर भी चढ़ाया जाता था। शादी-ब्याह के मौसम में भी यहां के फूलों की डिमांड बढ़ जाती थी, लेकिन जब से लॉकडाउन लगा ये सिलसिला भी बंद हो गया।
अब तक हुआ करीब 5 करोड़ का नुकसान
फूल व्यवसायी पप्पू श्रीमाली ने बताया कि लॉक डाउन के बाद से अब तक फूल कारोबार को करीब 5 करोड़ का नुकसान हुआ है। सरकार सोशल डिस्टेंसिन्ग के साथ फूल व्यापारियों को दुकान खोलने की अनुमति दे तो बेहतर हो। फूल किसान प्रवेश मौर्या, विकास, प्रदीप, पतालू ने बताया कि लॉक डाउन खुले तो कुछ राहत मिले। सवाल ये भी है कि मंदिरों में पूजा-पाठ और अन्य समारोह की इजाज़त कब मिलेगी। इसके बिना तो फूल की खेती बेमानी है। लोग भूखे मर जायेंगे।