जौनपुर। स्व का सर्व में परिवर्तन ही एकात्म मानववाद है। एकात्म मानववाद में स्वआत्मा सर्वात्मा हो जाती है और स्वतत्व सर्वतत्व में बदल जाता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने आध्यात्मिक चिंतन को सत्ता के साथ जोड़ने का काम किया है। आध्यात्मिकता लोक जीवन जीने का सबसे बड़ा यंत्र, मंत्र, तंत्र है। जहाॅं इसकी त्रिवेणी होती है, वहीं आध्यात्म होता है। उक्त उदगार तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में 'एकात्म मानववाद: आध्यात्मिकता का द्वार' विषय पर हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि बीएचयू के पूर्व कुलपति प्रो. हरिकेश बहादुर सिंह ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि दर्शन ज्ञान की पराकाष्ठा है। यह ऐसा विषय है जिसमें दृष्टि के साथ अंतर्दृष्टि भी खुलती है।
संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि प्रो. एचएस.उपाध्याय, डीन एवं अध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि जब दुनिया में यूरोपीय राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और मार्क्सवाद चरम पर था, तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने इन वादों को नकार कर एकात्म मानववाद का दर्शन दिया। धर्म मूल्य नहीं है बल्कि मूल्य का मानदंड है। धर्म के नियंत्रण से अर्थ और काम लोक कल्याणकारी होता है। भारतीय धर्म के सैद्धांतिक पक्ष को राजनीति में लाने का प्रयास पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने किया। राष्ट्र की आत्मा चित् में होती है और चित् संस्कृति की प्रकृति होती है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे गोरखपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सभाजीत मिश्र ने कहा कि एकात्म मानववादी दर्शन भारत की उपज है। ऐसा मानववाद जो एक आत्मा के सिद्धांत पर आधारित हो, जो मनुष्य को एक मानता हो। एकात्म मानववाद आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा है जो आत्मज्ञान से ही प्राप्त होता है। चित् से सब कुछ संचालित होता है और चित् वह है जो सर्वत्र है, किंतु हमारी पकड़ में नहीं आता। वही परमात्मा है, वही राष्ट्र है।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ.अमिता दुबे ने कहा कि उनका संस्थान ऐसे कार्यक्रम कराने के लिए कटिबद्ध है। वे साहित्य के साथ-साथ कला, विद्या, विज्ञान, धर्म, दर्शन आदि विषयों को प्रोत्साहित करने के लिए भी कार्य करते हैं।जो भी विषय समाज को दिशा दे,उस पर हिंदी संस्थान कार्य करता है। अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने उद्बोधन में कॉलेज के प्राचार्य प्रो.आलोक कुमार सिंह ने कहा कि प्रो. हरिकेश सिंह और प्रो. सभाजीत मिश्र जैसे सादगी और सत्य वाले व्यक्तित्व विरले ही होते हैं। मंच पर ऐसी महान विभूति को पाकर अभिभूत हैं। इसे शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता। महाविद्यालय के प्रबंधक राघवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म दर्शन आज सर्वाधिक प्रासंगिक दर्शन है। उनका मानना था कि जब तक अंतिम व्यक्ति का विकास नहीं होता, तब तक देश का विकास संभव नहीं है।
संगोष्ठी के संयोजक प्रो. रामकुमार गुप्त ने अतिथियों का परिचय कराया तथा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म दर्शन पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में पूर्व प्राचार्य डॉ अरुण कुमार सिंह, प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष दुष्यंत सिंह, डॉ.महेंद्र कुमार त्रिपाठी, डॉ.सुधाकर द्विवेदी, डॉ.अशोक सिंह रघुवंशी, डॉ.सत्य प्रकाश सिंह, प्रो राजदेव दुबे, डॉ.ओम प्रकाश सिंह, प्रो.बंदना दुबे, प्रो.सुषमा सिंह, प्रो. रीता सिंह, प्रो.श्रद्धा सिंह, प्रो.आभा सिंह, डॉ.आशा सिंह, प्रो. राजीव रतन सिंह, डॉ हरिओम त्रिपाठी, डॉ संजय तिवारी इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रो. सुभाष चंद विशोई, राजस्थान के डॉ. राम सिंह, तरुण कुमार गुप्त, डॉ.शुभ्रा सिंह, डॉ.पूनम सिंह सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। संचालन बी.एड. विभाग के प्रो.अजय कुमार दुबे ने किया।